कहता है गुरु ग्यानी / प्रियंकर
वे कहते हैं
कविता को प्रकाश-स्तंभ
की तरह होना चाहिए
एक सच्चे सार्वभौम
विचार को क्रांति का
बीज बोना चाहिए
कहाँ है सागर
किस ओर से आते हैं जहाज
उन्हें नहीं पता
किस दिशा में है शत्रु
वे नहीं बताते
वे जिनके कटोरदान
में बंद है
हमारी उपजाऊ धरती
जो हवा की बीमारी
के कारक हैं
अनापत्ति प्रमाणपत्र
लहराते हुए हाज़िर हैं
एक बेहतरीन योजना
के साथ
नदी के पाट को
चिकनी-चौड़ी सड़क में
कैसे बदला जाए
पैसे और प्रौद्योगिकी को
बहंगी में लादे फेरीवाले
गली-गली घूम रहे हैं
एक से एक कारगर योजनाएं
वाजिब दाम पर उपलब्ध हैं
तमाम बुद्धिजीवी, प्रौद्योगिकीजीवी,परजीवी
इन बाज़ारचतुर नवाचारियों की
दक्षता पर मुग्ध हैं
दुलहिनें लगातार
मंगलाचार गा रहीं हैं
खबर है
जब हिंद और
प्रशांत महासागर
कचरे से पट जाएंगे
बहुत कम लागत में
अमेरिका तक
सड़क यातायात संभव होगा
गर्म कोलतार में
पैसे की गंध सूंघते
लकड़सुंघवे लड़ रहे हैं
यह कारों की बंपर फसल
का ऐतिहासिक क्षण है ।
एक जादूई भाषा में
बाइबल की तर्ज पर
वायबल-वायबल
जैसा कोई मंत्र बुदबुदाते हुए
जब वे “गरीबी की संस्कृति”
के खिलाफ
कुछ बोलते हैं
“सांस्कृतिक गरीबी” के
कई पाठ खुलते हैं
सुविधाओं में सने संत उच्चार रहे हैं
पृथ्वी और नदी को
माँ कहना चाहिए
सरस्वती के स्मरण मात्र से
जैसे आह्लादित होता था
ऋग्वैदिक ऋषि
कुछ वैसी ही खुशी का
इज़हार करना चाहिए
पल-पल बदलती
पटकथा वाले इस नाटक में
एक कवि की क्या भूमिका हो सकती है
साइक्लोप्स अनगिनत आँखों से
घूर रहा है
अंधेरा बढ़ चला है
धुंध और धुएँ से भरे
समय में
प्रत्यंचा सी तनी है कविता ।