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कहमा के कोहबर लाल गुलाब हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पत्नी की बात से रुष्ट होकर पति घर से बाहर अपना बिछावन लगाता है। रात में वर्षा होने लगती है। पति घबरा उठता है। वह पत्नी से किवाड़ खोलने का अनुरोध करता है और एक रात के लिए पलंग पैंचा माँगता है। पत्नी तैयार तो है, लेकिन उसकी शर्त है कि वह उसके माँ-बाप से दहेज नहीं लेगा। पति की भी शर्त है- अगर उसकी पत्नी उसकी माँ की बातों का उत्तर न दे।
इस गीत में पति-पत्नी की मातृ-पितृ भक्ति वर्णित है।

कहमा के कोहबर लाल गुलाब हे।
कहमा के कोहबर पनमा सेॅ छारल<ref>छाजन किया हुआ</ref> हे॥1॥
बाहरी के कोहबर लाल गुलाब हे।
भीतरी के कोहबर पनमा सेॅ छारल हे॥2॥
ताहि पैसी सूते गेला, ससुर जी के बेटा हे।
जौरे<ref>साथ में</ref> भै सुतली पंडितबा के धिआ हे॥3॥
अलग सूतू बलग सूतू, ससुर जी के बेटा हे।
नैहरा के चुनरी मलिन होयत हे॥4॥
एतब<ref>इतना</ref> बचन जबे सुनलनि, ससुरजी के बेटा हे।
घर सेॅ पलँग बाहर कै<ref>करके</ref> ओछाबलन<ref>बिछाया</ref> हे॥5॥
परि गेलऽ बनिया<ref>बूँद</ref>, बरसि गेलऽ मेघ हे।
ओलती<ref>छप्पर या छाजन का छो, जहाँ से वर्षा का पानी जमीन पर गिरता है</ref> लगल गभरु<ref>वह स्वस्थ नवयुवक जिसकी अभी मसेॅ भींग रही हों</ref>, रोदन पसारै हे॥6॥
खोलू खोलू आगे धानि, सोबरन केबार हे।
आजू के रतिया, पलँग पैंचा देहो हे॥7॥
आजू के रतिया, पलँग पैंचा देबो हे।
हमरहुँ बाबा सेॅ, दहेज जनु लिहो हे॥8॥
तोरहुँ बाबा सेॅ, दहेज जनु लेबो हे।
अमरहुँ अम्माँ सेॅ, दहेज जनु लिहो हे॥9॥
तोहरहुँ अम्माँ कें जबाब नहिं देबो हे।
लाख अरजिओ परभु लेख<ref>हिसाब; लेखा</ref> जनु लिहो हे॥10॥

शब्दार्थ
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