बापू
तुम्हारे आश्रम में आकर ही जान पाई
किसी दूदा भाई और दानी बहन की बेटी लक्ष्मी को
तुमने गोद लिया था
इस देश की जनता की तरह हमें तो बस यही पता था
कि एक राजकुमारी को तुमने अपना नाम दिया था
तो क्या
अतीत की तकली से लेकर
भविष्य के घूमते चक्र के बीच
तने हुए सत्याग्रह के कच्चे सूत से
बापू बुना गया तुम्हारे चरखे से भी एक राजसी कपड़ा
जिसे रानी और उसकी सन्तानें सिंहासन पर बैठने से पहले पहन लेते हैं
कहाँ है लक्ष्मी और उसकी सन्तानें
क्या वह तुम्हारे सामूहिक सफ़ाई अभियान में लगे
अभी तक देश का मैला ढो रहे हैं
या सामूहिक प्रार्थना-यज्ञ में
पतित पावन सीताराम गाते हुए
ईश्वर से अपने लिए दो रोटी के जुगाड़ की प्रार्थना कर रहे हैं
बापू क्या तुम भी अपने चश्मे के पार नही देख पाए
कि
तुम्हारे सत्य की प्रयोगशाला में
दादू और लक्ष्मी जैसे लोग अहिंसा और समानता के के उपकरण मात्र बनकर रह गए
और वह जिसके नाम पर अपने नाम की चेपी लगा दी थी तुमने सहर्ष
क्या तुम्हे अहसास था कभी
कि उस नाम की चेपी के नीचे एक धर्म का दम घुट गया और वह बेमौत मारा गया
उसकी लावारिस लाश तुम्हारे नाम के ठीक नीचे दबी पड़ी है
जिस पर लोकतन्त्र की कुर्सी बिछी है