क़िन्दीलें / कंस्तांतिन कवाफ़ी
आने वाले दिन
खड़े हैं हमारे सम्मुख
जैसे कि—
रोशन क़िंदीलों की एक पाँत—
सुनहरी, चमकीली और भरपूर क़िंदीलें ।
बीत चुके दिन पीछे जा पड़े हैं हमारे,
जैसे कि
एक उदास क़तार; बुझी क़िंदीलों की,
सबसे क़रीबवालियों से अभी तक धुआँ उठ रहा है
ठंडा, पिघला हुआ और मुड़ा-तुड़ा ।
मैं उनकी तरफ़ देखना नहीं चाहता :
उनकी शक़्ल मुझे उदास कर जाती है ।
उदास कर जाती है मुझे उनकी शुरूआती रोशनी ।
मैं आगे, रोशन क़िंदीलों को, देखता हूँ ।
मैं पीछे मुड़ना नहीं चाहता, देखना नहीं चाहता
डरा हुआ हूँ कि कितनी तेज़ी से वह काली क़तार
लम्बी होती जाती है, कितनी तेज़ी से
एक और बुझी हुई क़िंदील जा मिलती है
पिछलीवालियों से ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल