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काची अम्बली गदराई सामण मैं / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
काची अम्बली गदराई सामण मैं
बुड्ढी री लुगाई मस्ताई फागण मैं
कहियो री उस ससुर मेरे नै
बिन घाली लेजा फागण मैं
कहियो री उस बहुए म्हारी नै
चार बरस डट जा पीहर मैं
कहियो री उस जेठ मेरे नै
बिन घाली लेजा फागण मैं
कहियो री उस बहुए म्हारी नै
चार बरस डट जा पीहर मैं
कहियो री उस देवर मेरे नै
बिन घाली लेजा फागण मैं
कहियो री उस भावज म्हारी नै
चार बरस डट जा पीहर मैं