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काठ की आलमारी में किताबें–दो / प्रदीप मिश्र

काठ की आलमारी में किताबें – दो

बच्चे पढ़ रहे हैं
हमारा देश महान था
धरती सोना उगलती थी
भाषा की जड़े हृदय से निकलकर
रगों में दौड़तीं थीं
संस्कृति आकाश की तरह
तनी हुई थी समाज पर

यह सुनकर बेचैन हैं
काठ की आलमारी में बन्द किताबें
बार-बार पन्ने फडफ़ड़ा रहीं हैं
इन्तज़ार कर रहीं हैं
किसी स्वतन्त्रता दिवस पर उन्हें
सामूहिक माफ़ी दी जाएगी

तब फिर से पढ़ेगें बच्चे
हमारा देश महान है
धरती सोना उगलती है
भाषा की जड़े हृदय से निकलकर
रगों में दौड़ती है
संस्कृति आकाश की तरह
तनी हुई है समाज पर ।