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कादम्बरी / पृष्ठ 10 / दामोदर झा

45.
तकर बीचमे करिया गिरि सन सेनापतिके देखल
उनटल वन उखड़ल ई सीमर मुइलहुँ हम ई लेखल।
मारल जीव सहस्र शरीरक चूबल सघन रुधिरसँ
भीजल लथपथ सगरे तनू वन भरल तकर अनुचरसँ॥

46.
हमरा मनमे भेल मोहमय जीवन सभक एकर अछि
सज्जन निन्दित मदिरा मांस एकर भोजन सुन्दर अछि।
अपन देवताके प्रसन्न करबालय नर-बलि दै अछि
बालक सभके कसरत करबा लय मृगया सिखबै अछि॥

47.
शास्त्र सियारक बोली उल्लू शुभ वा अशुभ निदेशय
प्रज्ञा सब पक्षीक श्वान गण बाघक पथ उपदेशय।
राज्य शून्य वनमे आपानक उत्सव मनके मोहय
मित्र बनल अछि धनुष सतत हिंसा केर अवसर जोहय॥

48.
विषमुख तीव्र भुजंगम सन सायक-गण संग रहै अछि
बाघ सिंह बिच दिवस राति रहि तकरे बात कहै अछि।
वन्दी कय आनल पर तिरिया पत्नी एकर बनल अछि
चोरि डकैती निज कुटम्ब केर पालनहुक संबल अछि॥

49.
जहि विपिनमे किछ दिन लय ई डेरा कय निबसै अछि
कन्द मूल फल लती गाछ सङ जीव जन्तु बिनशै अछि।
नीक लोक केर सब गुण ई अधलाह कर्म कर बेचल
ई सब यावत हमहूँ एकरा सभक विषयमे सोचल॥