कादम्बरी / पृष्ठ 39 / दामोदर झा
49.
कान ठाढ़ कय घाड़ उठा इन्द्रायुध ओम्हरे आँखि तनै छल
नांड़िसँ शिर केस अचंचल सब इन्द्रियसँ गीत सुनै छल।
निर्जन वनमे गीतक सम्भव भेल कतय कौतूहल चढ़ले
घोड़ा कसि क’ भय सबार पछवारि तटे तकरे दिशि बढ़ले॥
50.
गीतक लोभे हरिणक झुण्डे आगू दौड़ल मार्ग कहै छल
उपरे घारे घोड़ा चलिते असमंजस गति वाट बहै छल।
ततय जाय देखल एक सुन्दर मन्दिर फाटिक मणिसँ बनले
मन्दिर बीच चतुर्मुख शंकरजीके भक्ति पुरस्सर नमले॥
51.
हुनकर दक्षिण मूर्तिक सम्मुख तन्मय अपन देह बिसरै छल
कुन्द इन्दु सम गोर कलेवर कान्ति तकर चहु दिशि पसरै छल।
कोरामे वीणाके रखने मधुरस्वनसँ से बजबै छल
दूध-समुद्र बीचमे बैसलि जनु लक्ष्मी शिवके मनबै छलि॥
52.
कोपानलहि जराओल कामक प्रत्युज्जीवन आशा कयने
रति जनु शंकरके आराधय गीतहिं पाशुपतव्रत धयने।
वयस नवीन कलेवर सुन्दर वैराग्यक अभ्यास बढ़ाबय
चन्द्रापीड़ विलोकल कन्या संगीते शिव केर गुण गाबय॥
53.
तकरा देखि कतयसँ कन्या निश्चय ई भूलोकक नहि थिक
देवलोक केर कोनो दुःखसँ पीड़ित ई ककरो बेटी थिक।
हमरा देखि बिलायत की ई अथवा नभ-मण्डल उड़ि जायत
देखि मर्त्यभुवनक मनुष्यके तपबलसँ शिव लिंग समायत॥