भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 54 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

59.
एतबा कहि असहाय भावसँ देखि मौन भय रहले
हुनक अवस्था देखि विषम हम मनमे चिन्ता गहले।
प्राणक रक्षा हेतु शिशिर पल्लवसँ सेज आछोओल
तकरा उपर सुता चानन घसि सगरे देह लगाओल॥

60.
तहि अवस्थामे रहितहुँ लाजे नहि बाजि सकै छल
केवल दीन भाव हमरा दिशि जल भरि आँखि तकै छल।
एहि अवसर केर ई समुचित अछि से अपना मन गुनलहुँ
अनुचित बूझि कतहु नहि रोकथि ते बिनु कहने उठलहुँ॥

61.
सुहृत्प्राणरक्षा निन्दित काजो करु ई पढ़ने छी
हुनके प्राणदक्षिणा लय भिक्षुकक रूप गढ़ने छी।
एकरा बाद कथन सामर्थ्यक पार वचन रखने छी
कण्ठ छोड़ि नहि सकए अहूँ से एतबहिसँ लखने छी॥

62.
ई कहि चुप भय उत्तर लय हमरा दिशि ताकय लगले
भय आनन्दविभोर हमहुँ अपना मनमे ई गुनले।
पुरविल पुण्ये भाग्य पैघ अछि हुनको ई गति भेले
हमरहि जकाँ काम हुनकहु हमरे वियोग दुख देले॥

63.
बात साफ अछि भेट होय लगले वियोग दुख दूरत
उत्तर की कहबैनि जाहिसँ हमर मनोरथ पूरत।
ताबत आबि कंचुकी कहलक रानी एतय अबै छथि
मोन अहाँक नीक नहि अछि सुनि बैदो संग लबै छथि॥