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कामिन दीदी / सुकुमार चौधुरी / मीता दास

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सुबह सवेरे काम पर आने में अक्सर
कामिन दीदी को देर हो ही जाती है।
उसके पैरों में गोखरू की गुठलियाँ और
हज़ारों प्रलेप
काफ़ी दूरी तय कर के पैदल आकर
थकन से चूर उसके बनते-बिगड़ते चेहरे ​का स्वेद।

और
फिर बरामदे में बैठ दीदी
ऐश के साथ
बीड़ी सुलगाती है,
बीड़ी का नाम है सुधा।

उधर माँ बड़बड़ाती, भला-बुरा कहती
क्योंकि दस बजे का भात राँधने में माँ को
हमेशा ही देर हो जाती है।

मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास