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कामी भजे शरीर को / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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कामी भजे शरीर को , लोभी भजता दाम।
पर उसका कल्याण है, जो भज लेता राम॥
जो भज लेता राम, दोष निज मन के हरता।
सुबह शाम अविराम, काम परहित के करता।
'ठकुरेला' कविराय, बनें सच के अनुगामी।
सच का बेड़ा पार, तरे अति लोभी, कामी॥