वसंत हमें अपने पंख दे दो 
और आकाश हमें उड़ने दो 
इस छोर से लेकर 
उस छोर तक 
हमारे अंगों को उज्ज्वल बनाओ वसंत 
जैसे फूटते हैं कोंपल 
खिलती हैं कलियाँ 
रंग-बिरंगी
 
हम ऊब चुकी हैं अपनी अट्टालिकाओं से 
सुविधाओं से भौतिकता से 
पालतू कुत्तों से नौकरों से 
बगीचे की कृत्रिम हरियाली से 
हमारी उत्तेजना का कोई पड़ाव नहीं 
कामसूत्र से लेकर ब्लू फिल्म तक 
हमारे सिलीकोन से भरे वक्ष 
शल्यक्रिया से कसी गई योनि 
संसार का सर्वश्रेष्ठ पुरुष हमें मिला नहीं 
रुपए पैदा करने वाला यंत्र 
हमें दबोचता है हर रात और 
ख़ामोश हो जाता है 
नितंब और वक्ष की रेखाएँ 
अश्लील नहीं हैं जितनी अश्लील हैं 
बाज़ार की निगाहें 
समाज की नैतिकता 
वसंत हमें तृप्त कर दो 
अपने आलिंगन में कसकर 
नसों में तेज़ कर दो 
रक्त प्रवाह ।