काम करैं अर भूखे सौवें / रामफल सिंह 'जख्मी'
काम करैं अर भूखे सौवें, यू कैसा दस्तूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर
काम करणिया भूखा रहै यहां, मारै मोज लफंगा क्यूं
कपड़े त्यार करणिया माणस, दखे फिरता नंगा क्यूं
जात-धर्म पै कट-कट मरते, रोज रहै सै दंगा क्यूं
डाकू-चोर, दगेबाजों के, दीखैं घणै हिमाती क्यूं
गरीब आदमी को तंग करदे, रपट लिखी ना जाती क्यूं
खून करण के ठेके ले रे, इसे बजैं पंचाती क्यूं
तालीबानी फैसला कर के, मारैं बिना कसूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर
म्हारे बाळक कुपोषण तै, मरते बिना दवाई क्यूं
म्हारे बाळक भूखे रह ज्यां, उन की दूध-मळाई क्यूं
म्हारे आळे अनपढ़ रह ज्यां, उन की अलग पढ़ाई क्यूं
म्हारे बाळक साईकिल ले रे, चोरां ते रखवाळ करैं
उन के बाळक गाड़ी ले कै, सड़कां पै आळ करैं
म्हारे बाळक सीमा ऊपर, बाडर की संभाळ करैं
उनके बाळक लूट मचा रे, म्हारे सपने चकनाचूर
या बिल्कुल नहीं मंजूर
माणस नै माणस ना समझैं, बाजे इसे अन्यायी क्यूं
बाहण-बेटी की इज्जत तारैं, बाजे इसे कसाई क्यूं
थम हाथ पै हाथ धरे बैठे, थारै घणी समाई क्यूं
काम करणिऐ माणस का, टेक्या नाम कमीणा क्यूं
गरीब आदमी बोल सकै ना, मुश्किल सै जीणा क्यूं
विकास म्हं ज्यादा भागीदारी, फिर भी तू हीणा क्यूं
म्हारे हक सैं उन के काबू, हम राखे कोसों दूर
या बिल्कुल नहीं मंजूर
जहाज किराया सस्ता है, मोटर का महंगा भाड़ा क्यूं
म्हारी दांती-पाली खोस्सैं, जमींदार मन-पाड़ा क्यूं
कोये काजू और बदाम खावै, म्हारे चून का खाड़ा क्यूं
हम कामे हम हाथ जोड़ैं, वा क्यूं आंखें लाल करै
जब देखै गाळी दे दे, ना इज्जत का ख्याल करै
‘जख्मी’ का गडवाळा बण, मन मर्जी ते उराळ करै
तेरी जुल्म कहाणी छप ज्या, कल हो ज्या मशहूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर