कायथ कर्त्तापुत्र है, धरनी शब्द प्रमान।
देवी-पुत्र कहाइहैं, जो मूरख अज्ञान॥1॥
देवी-पुत्र जो कहत हैं, कायथ-कुलहिँ विचारि।
धरनी ते नर पातकी, अन्त विगुरचे झारि॥2॥
कायथ दास कहाइके, दास-भाव नह होय।
धरनी प्रभु ते चतुर हो, जाय कमाई सोय॥3॥
धरनी चारिहु वरन में, कलि कायथ बुधिवन्त।
सो हरि-भक्ति न जानि है, फिर पछितैहै अन्त॥4॥
धरनी कायथ धन्य है, जो मद माँस न खाय।
परमारथ जियमें वसै, जीवत ही तर जाय॥5॥
धरनी लेखा सुमुझिवो, मिटो पाप औ पुन्य
बाकी तर शूना दियो, फाजिलतर भी शून्य॥6॥
कायथ देवी पुत्र नहिँ, हैं धरणीश्वर वंश।
झूठ मानि है कागला, साँच मानि है हंस॥7॥