भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किंछा / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
हम्में कोय बड़ोॅ चीज नै
एक तिनका छेकियेॅ अदना सा
मतुर हमरोॅ एक किंछा छै
हे शहीद ! तोरोॅ स्मारक सें
हमें लिपटी-लिपटी केॅ रही जहियै
लेकिन ई हवा छेकै हमरोॅ दुश्मन
हमरा उड़ाय लै जाय छै
हिन्हें-हुन्हें
पूरा होय लेॅ नै दै छै हमरोॅ सफर
हम्में केना केॅ ठहरियै
बारिश छेकै हमरोॅ दुश्मन
बहाय-बहाय दै छै हमरा
रुलाय-रुलाय दै छै हमरा
सड़ाय-गलाय दै छै हमरा
अपनोॅ सपना केना केॅ पूरा करियै
ई माली छेकै हमरोॅ दुश्मन
झाड़ू लैकेॅ आवै छै
झाड़ी-बुहाड़ी केॅ हमरा लै जाय छै
समझे नै छै मनोॅ केॅ कुछ्छु
हम्में कुछ्छु नै करै पारै छियै
हे शहीद ! तोरोॅ सम्मानोॅ में
जे होतै हमरोॅ होतै
जीवन केॅ चाह हमरोॅ एतने
कि हर हाल में
तोरा में सिमटी केॅ रहियों।