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कितनी आसान / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
धूप मेरे बरामदे की
दिन में कई बार
अपना अधिकार क्षेत्र बदलती है
जिसके अनुरूप बिना किसी द्वन्द्व के
मैं अपना स्थान बदल लेती हूँ
भ्रष्ट होते जाने की प्रक्रिया
कितनी अनाम
कितनी आसान होती है