कहाँ तक पढ़ोगी मेरी यह किताब
नीले रंग की
हरेक पृष्ठ सूखे गरल से चिपका हुआ
बार बार जीभ पर 
उँगली लगाकर ही खोलना पड़ेगा 
हर पन्ना तुम्हें ।
लोग आएँगे तो देखेंगे 
मेज़ पर अधखुली किताब
और उसकी बग़ल मे बैठी हो तुम ।
और 
बैठे - बैठे ही न जाने कब 
निस्तब्ध हो गईं ।
जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित