किसी का जो आइना नहीं है
वो शेर मेँने लिखा नहीं है।
इधर-उधर से नज़र मिलाये
कहीं किसी को पता नहीं है।
बसा लिया है उन्हें नज़र में
किसी से ये सब छिपा नहीं है।
दबी जुबाँ से न बोल पाये
ये इश्क़ का फ़लसफ़ा नहीं है।
असर करेगी दवा भला क्यों
बिना दुआ फ़ायदा नहीं है।
शज़र हवा दे रहा यूं फल भी
डगर में फिर भी खड़ा नहीं है॥
रक़ीब मेरा मददगार निकला
तभी तो वह बेवफ़ा नहीं है।
हवा चली जो ख़िलाफ़ मेरे
डिगा सके हौसला नहीं है॥
सगा नहीं यूं मिला कहीं पे
चलो ये भी मसअला नहीं है॥