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कि हमरे हतs / इंदिरा भारती
Kavita Kosh से
रोजे तू करइत हतs स्वीकार
कि हम हतीअओ तोहर
तोहर दुख दरद के साक्छी
कइसे हम समझू
कि तू हमरे हतs ?
देखइले कुछ, सुनइले कुछ,
मुदा अनुभव करइत हती
तs लगइअ कि तू हमरे हतs
तन आ मन एही दुविधा में
व्याकुल आ विकल हो जाइत हए.
तखनी जखनी कोनो निस्कर्स न निकलइत हए.
हो जाइत हती हम देह आ मन से
बेहद बीमार
मन में अबइत हए
जे सांस लेबे में ही निकल जाएत परान.
भरल विसवास के गागर छलकइत रहइअ
कामना के सुबंधित फूलवारी में
जब कोनो भौंरा के गुंजार करइत देखइले
तs लगइअ कि तू हमरे हतs