Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 15:33

कीजिए मत कमाल की उम्मीद / श्याम कश्यप बेचैन

कीजिए मत कमाल की उम्मीद
हमसे ऐसे ख़याल की उम्मीद

बन के चूहे, कुतर रहे हैं वही
जिनसे थी देखभाल की उम्मीद

राजधानी में ख़ूब बरसा है
अब नहीं है अकाल की उम्मीद

मेरी बस्ती में सिर्फ गूंगे हैं
कीजिए मत सवाल की उम्मीद

इन धमाकों के शहर में बस कर
क्या रखें जान-माल की उम्मीद

सब्र करना पड़ा कटोरे से
लेके आए थे थाल की उम्मीद

थोड़ी बिगड़ी है, कोई बात नहीं
है अभी बोलचाल की उम्मीद