कुँजन के कोरे मनु केलिरस बोरे लाल ,
तालनि के खोरे बाल आवति है नित को ।
अमृत निचोरे कल बोलति निहोरे नेकु ,
सखिनु के डोरे देव डोलै जित तित को ।
थोरे थोरे जोबन बिथोरे देत रूपरासि .
गोरे मुख मोरे हँसि जोरे लेत हित को ।
तोरे लेति रति दुति मोरे लेत मति गति ,
छोरे लेति लोकलाज चोरे लेत चित को ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।