भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ कत'ए / साहिर लुधियानवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चन्द कलियाँ निशात की चुनकर
मुद्दतों मह्वे-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ


तपते दिल पर यूं गिरती है
तेरी नज़र से प्यार की शबनम
जलते हुए जंगल पर जैसे
बरखा बरसे रुक-रुक, थम-थम


जहाँ-जहाँ तेरी नज़र की ओस टपकी थी
वहां-वहां से अभी तक ग़ुबार उठता है
जहाँ-जहाँ तेरे जल्वों के फूल बिखरे थे
वहां-वहां दिले-वहशी पुकार उठता है


न मुंह छुपा के जिए हम,न सर झुका के जिए
सितमगरों की नज़र से नज़र मिला के जिए
अब एक रात अगर कम जिए,तो कम ही सही
यही बहुत है कि हम मश्अलें जला के जिए