भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ न माँग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

62
कुछ न माँगा
दिनभर खटे थे
सूखी रोटियाँ
माँगी थीं साँझ ढले
धिक्कार मिली।
63
हदे होती हैं
प्यार-मनुहार की
तकरार की
बेशर्मी का न होता
ओर-छोर कोई भी।
(7-8-2011)