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कुछ शहद में दिया जा रहा है / विजय किशोर मानव

कुछ शहद में दिया जा रहा है
ख़ून ठंडा किया जा रहा है

बिजलियां गिर पड़ें इसलिए
बादलों को सिया जा रहा है

मोम के घर बनाए गए थे
उनको दीपक दिया जा रहा है

आंखें भरती हैं सूखी हुई
गांव-भर मर्शिया गा रहा है

एक ठिठुरे हुए मुल्क़ में
धूप का माफ़िया आ रहा है

हाथ को हाथ दिखता नहीं
क्या उजाला किया जा रहा है

मुट्ठियों में बंधे सब्र का
इम्तहां फिर लिया जा रहा है