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कुझ कत्त कुड़े / बुल्ले शाह

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कुझ कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े, छल्ली लाह भरोटे घत्त कुड़े।
जे पूणी पूणी कत्तेंगी, ताँ नंगी मूल ला वत्तेंगी।
सौ वरिआं दे जे कत्तेंगी, ताँ काग मारीगा झुटकुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

विच्च गफलत जो तैं दिन जाले<ref>गुज़ारे, व्यतीत किये</ref> कत्तके कुझ ना लेओ सँभाले।
बाझों गुण सहु आपणे नाले, तेरी क्यों कर होसी गत्त<ref>गती, मुक्ति</ref> कुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

माँ पिओ तेरे गन्ढी<ref>काज रचाया</ref> पाजिआँ, अजे ना तैनूँ सुरताँ आइआँ।
दिन थोड़े ते चाअ मकाइआँ, ना आसे पेके वत्त कुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

जे दाज विहूणी जावेंगी, ताँ किसे भली ना भावेंगी।
ओत्थे सहु नूँ किवें रीझावेंगी, कुझ लै फकराँ दी मत्त कुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

तेरे नाल दीआँ दाज रंगाए नी, ओहनाँ सूहे सालू पाए नी।
तूँ पैर उलटे क्यों जाए नी, ओत्थे जाए ताँ लग्गे तत्त कुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

बुल्ला सहु घर आपणे आवे, चूढ़ा बीड़ा<ref>पान की गिलौरी</ref> सभ सुहावे।
हुण होसी ताँ गल लावे, नहीं रोसे नैणी रत्त कुड़े।
कुझ कत्त कुड़े......।

शब्दार्थ
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