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कुण सुणै / वाज़िद हसन काज़ी
Kavita Kosh से
ऊठगी आंगणै रै
बीचौ बीच
भींतां
मा-बाप रौ होयगो
बंटवाड़ौ
नीं सुहावै
अबै भाइपौ
नीं रैयी जग्यां
बठै कीकर
रमै टाबर अेकण साथै
आंगणै रौ घेर-घुमेर
रूंख
फैलावै आपरा पानड़ा
इण आंगणै सूं
बिण आंगणै तांई
देवै न्यूंतौ
भाई नै भाई सूं मिलण रौ
चुपचाप
पण आज कुण सुणै
कुण समझै
हेत री भासा
बदळगी
रिस्तां री परिभासा।