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कुलस्त्री / राजशेखर

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गृहपति के घर आने पर
उठकर करना स्वागत
उससे बोलचाल में नम्र बनकर रहना
उसके चरणों में रखना दृष्टि
उसके लिए बिछाना आसन
और सेवा उसकी करना स्वयं

उसके सोने पर सोना
और छोड़ना शैया
उसके जगने से पहले
पहले के लोगों ने
पुत्रि कुलवधू के
सिद्धान्तधर्म यही कहे हैं।


मूल संस्कृत से अनुवाद : राधावल्लभ त्रिपाठी