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कृष्ण / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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शंश गृन्द शिर मुकुट, कर्ष कुंडल कलोलकर। तंत गृन्द तनु तिलक, धरोगर माल मनोहरा॥
वंवगृन्द वाँसुरी अधर, चन्दन तन राजित। मंमगृन्द मृदु मोरपच्छ, पट पीत विराजित॥
अंअगृन्द अन्धेर मिटु, जेति हृदय जग मगि रहो।
नंनगन्द निरखो हृदय, ध्यान धरे धरनी कहो॥1॥