Last modified on 8 जून 2016, at 01:02

के तोहें छेका सच कहियोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

के तोहें छेका सच कहियोॅ,
मन पूछै छी, चुप नै रहियोॅ।

कभी चाँदनी रं दिखलावौ
कभी घटा के नीचेॅ आवौ,
कभी फूल के गंध बनी केॅ
वन के बीचो बीच बुलावौ,
जेकरा सुनी-सुनी मन पुलकै
जनम जनम के कथा सुनावौ;
एतनौ सुख जों मिलै छै हमरा
बेसी की आरो ही चहियोॅ।

नींद बनी केॅ कखनी आवौ
कखनी सपना में उतरावौ,
कखनी साथ छुड़ैलेॅ जाय छौ
कखनी हमरा हृदय लगावौ?
कुछ के भान कहाँ छै हमरा
कखनी बांधौ, बंध छुड़ावौ,
हे रं ऐवोॅ की ऐवोॅ ई
एक दिन सचमुच में ही अइयोॅ!