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कैकेई द्वारा वरदान मांगना / राघव शुक्ल

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राजन उचित समय है यह ही, तुम्हें कराती हूं मैं भान
कैकेई मांगे वरदान

राज महल में उत्सव कैसा
राजन मेरी समझ न आया
राजतिलक है रामचंद्र का
मुझे मंथरा ने बतलाया
मेरी अनुमति लिए बिना ही, मेरा यह कैसा अपमान

साथ दिया था मैंने रण में
याद करो दुष्कर क्षण राजन
मांगू दो ही वचन आज मैं
मिले भरत को ही सिंहासन
चौदह वर्ष हेतु कानन में, रघुवर का अब हो प्रस्थान

कौंध गई दशरथ के मन में
घटी हुई सारी घटनाएं
घायल श्रवण कुमार पड़ा है
प्यासे माता-पिता बुलाएं
समझ गए वे चक्र समय का, मानेगा लेकर के प्राण