भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसे लोग थे हम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
गेहूँ की बाली में लगते रहे कीड़े
हम ख़ामोश रहे
सफ़ेद कपड़ों से काँपते रहे गाँव
हम ख़ामोश रहे
समुद्र में तूफ़ान आया
हम ख़ामोश रहे
ज्वालामुखी विस्फोट हुए
हम ख़ामोश रहे
बादलों से आग की वर्षा हुई
हम ख़ामोश रहे
उसने खींच ली म्यान से तलवार
हम ख़ामोश रहे
कैसे लोग थे हम
हमें बोलने की छूट दी गई
हम ख़ामोश रहे ।