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कोई उठा ले इस पृथ्वि को / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
इस तेल में तेल कम
लहू ज्यादा है
दूध पी लिया अबोध बच्चे ने
यह उसी गैस पर उबला है
जिसमें लहू मिला है
कुछ बनने के लिए सिर खपा रहा है किशोर
सुनसान रात में
लालटेन के पेट में लहू जल रहा है
वक्त से पहुँचा दिया बेटे ने माँ को अस्पताल
एँबुलेंस लहू पर चल कर आई है
तेल रिस गया
लहू जल गया
आदमियों ने नहीं छोड़ा धरती को अपने लायक
कोई उठा ले
किसी दूसरे ग्रह पर रख आए
पृथ्वी को सँभाल कर।
(1991)