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कोई और सुर / गीत चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
हम उस ग़ज़ल के शे’र हैं
जिसका क़ाफ़िया टूट कर
कहीं छूट गया है
जिन्होंने हमेशा बह्र का ख़याल रखा
तुक के लिए सटीक शब्द
खोजने पर नए छंद भी मिले
मात्राएँ गिनने में कोई ग़लती न हुई
ग्यारह-तेरह तेरह-ग्यारह के नियम बनाए
सुंदरता उनकी बाँहों में हाथ डाल चली गई
हम कुछ टूटी पंक्तियाँ, बिना तुक वाले शब्द
सम पर लौटने से इनकार करती हाँफ लिए यहीं खड़े अब भी
किसी सुभाषित ऋचा श्लोक पद या शे’र की तरह
नहीं हो पाया हमारा जीवन
महा थे हम महाकाव्य न हो पाए
रोते हुए आए रोता छोड़ चले गए
सुने भी न गए इस बीच कभी
हमने पूछ लिया था--
सा और ग के बीच
रे क्यों जोड़ दिया
सा के ठीक बाद जो कंपन पसलियों में भटकता है
वहाँ कोई और सुर भी हो सकता था
फिर
हम उस खोए हुए बेनाम सुर में रहने लगे