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कोई न कोई / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
मै रहूँ न रहूँ
होगा ज़रूर
कोई न कोई
नाम बदल जाते
बदल जाते हैं रूप
मगर होता है
हर समय हर जगह
कोई न कोई
राह तो ढूंढ़नी होती है ख़ुद
मगर कर देता है इशारा
कोई न कोई
देखना
जब कुछ भी न पड़े दिखाई
देखना
जब अंधेरा हो घना
और दम घुट रहा हो तुम्हारा
जैसे डूबते हुए आदमी का
देखना
जहाँ भी हो
वहीं
मैं रहूँ न रहूँ
होगा ज़रूर
कोई न कोई।