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कोना फहरैए आँचरक छोर सजनी / बाबा बैद्यनाथ झा

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कोना फहरैए आँचरक छोर सजनी
देखि मोनमे उठैछ हिलकोर सजनी

कियैक बनलहुँ-ए एहन कठोर सजनी
देखू टहकै-ए अंग पोर-पोर सजनी

राति पूनमकेर हो वा अमावसकेर
अहीँ आबी तै होइछ इजोर सजनी

आब अपनहुँ तँ मोनकेर गप्प कहू
कियै लाजेँ कँपैत अछि ठोर सजनी

हम जे रहलहुँ एतेक दिन साधू बनल
आब बनबै अहाँ लए हम चोर सजनी

अहाँ महफिल जमाबमे जँ संग दी
फेर होमऽ ने देबैक भोर सजनी