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कोने में बैठी है मुनिया / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
कोने में बैठी है मुनिया
इस नवराते में
देख रही वह
व्यवहारों में आया है अंतर
छोटी बहना के हाथों में
बँधा कलावा है
छुटकी के सिर पर चूनर है,
हलवा, मावा है
रुपये और खिलौने लेकर
आयी है वो घर
मुनिया चूड़ी चाह रही है,
माँ से रूठी है
उसको कुमकुम नहीं लगाया
माँ भी झूठी है
बदल गया क्यों उसकी ख़ातिर
कंजक का अवसर
‘कन्या पूजन की अधिकारी
तू अब नहीं रही’
माँ ने उससे बात अचानक
क्यों यह आज कही
सोच रही क्या बदल गयी मैं
रजस्वला होकर।