फुच्चो के बेटॉ कौआ-बच्चा केॅ पकड़ी लेलै छै।
ओकरा गोड़ोॅ में गुड्डी के तागोॅ बान्ही देलेॅ छै॥
कौआं अपना बच्चा के जखनी सुनलेॅ छै आर्त्त पुकार।
जुटी गेलै कौआ के नेता यै गाछी पर पाँच हजार॥
कौआ के नेता बोलै छै, भेॅ जैतै सच्चा इन्साफ।
यै करनी के मजा चखैबै, कखनू नै करबै ई माफ॥
रोटी-बाटी-भात खिलाय केॅ, कत्तो दीर्य हमरा घूस।
एकरा आज छोड़ैबे करवै, कौआ नै होय छै मनहूस॥
घूस-घास मनुखे तक, कौआ केॅ छै आपनोॅ पार विचार।
कौऔ जों परपंच करेॅ तेॅ, केना केॅ बचतै संसार?“
कॉवँ-कॉवँ के तुमुल नाद सें भेलोॅ सभ्भे डावाँ डोल।
झटी-झपटी मार लागलै कौआँ तिक्ख-तिक्खोॅ लोल॥
कौआ के ई भीसन रुख, देखी केॅ डरलोॅ मनुज-समाज।
छोड़ी देलकै कौआ के बच्चा केॅ, सब केॅ लागलै लाज॥