Last modified on 6 मार्च 2017, at 11:03

कौण आया पैहन लिबास कुड़े / बुल्ले शाह

कौण आया पैहन लिबास कुड़े?
तुसीं पुच्छो नाल इखलास<ref>प्यार</ref> कुड़े।

हत्थ खुंडी मोडे कम्बल काला,
अक्खिआँ दे विच्च वसे उजाला,
चाक नहीं कोई है मतवाला,
पुच्छो बिठा के पास कुड़े।

कौण आया पैहन लिबास कुड़े?

चाकर चाक ना इस नूँ आखो,
एह ना खाली गुज्झड़ी<ref>गहरी</ref> घातों,
विछड़िआ होया पैहली रातों,
आया करन तलाश कुड़े।

कौण आया पैहन लिबास कुड़े?

ना एह चाकर चाक कहींदा,
ना इस ज़र्रा शौक महीं दा,
ना मुश्ताक है दुध दहीं दा,
ना उस भुक्ख प्यास कुड़े।

कौण आया पैहन लिबास कुड़े?

बुल्ला सहु लुक बैठा ओहले,
दस्से भेद ना मुख से बोले,
बाबल वर खेड़ेआँ तो टोले,
वर माँहढा<ref>मेरा</ref> माँहढे पास कुड़े।

कौण आया पैहन लिबास कुड़े?
तुसीं पुच्छो बिठा के पास कुड़े।

शब्दार्थ
<references/>