कौन उस आदमी के घर जाये / हरि फ़ैज़ाबादी

कौन उस आदमी के घर जाये
अपने वादे से जो मुकर जाये

रास्ते और हैं कई लेकिन
काश वो बात से सुधर जाये

आपने ख़ुद उसे बुलाया है
मौत अब बोलिए किधर जाये

आग तो बुझ गयी मगर उसकी
राख भी देखिए जिधर जाये

उसकी अपनी भी एक इज़्ज़त है
यूँ ही तूफ़ान क्यों ठहर जाये

रस्म वो ज़िंदगी की है कैसे
जो निभाने में कोई मर जाये

दर्द बढ़ने का डर नहीं मुझको
रात बस ठीक से गुज़र जाये

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