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कौशल्या / तेसरोॅ खण्ड / विद्या रानी

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सभै कुछ सुभे शुभ छेलै,
राजा नेॅ दुःस्वप्न देखलकै ।
मनोॅ में घबड़ैलोॅ राजा,
गुरु वशिष्ठ केॅ बोलाय लेलकै ।

रामोॅ केॅ राजा बनाये लेॅ,
विचार आवि रहलोॅ छेलै ।
अवस्था तेॅ होइये गेलोॅ छेलै,
अधेड़ अवस्था में पुत्रा पैयनें छेलै ।

समय गुनी वशिष्ठमुनि अयलोॅ,
राज भवन में सभै सुख पैलकोॅ ।
राजा कर जोड़ि खड़ा होलोॅ,
कुलगुरु के आदर सें बैठैलकोॅ ।

हुनि तबेॅ वशिष्ठ मुनि सें,
पूछलकोॅ दुःस्वप्न केरोॅ बात ।
राम के राजा बनावै खातिर,
शुभ तिथि पूजा पाठ केरोॅ बात ।

कुछु दिनों सें दुःस्वप्न देखै छी,
सूरज चाँद के खंडित देखै छी ।
कुक्कुर पूरब मुख कानै छै,
सियार भी फेत्कार करै छै ।

रथोॅ के घोड़ो के लोर झड़ै छै,
चाँद खंडित होय गिरै छै ।
की परिणाम होतै ऐकरोॅ,
तोरे कहै छियों कहलिये नै केकरो ।

अखनी अखनी विवाह होलोॅ छै,
अपसकुनो पर धियान नै गेलोॅ छै ।
हे कुलगुरु तोहीं बताबोॅ,
कखनी रामोॅ के राजा बनावौं ।

वशिष्ठमुनि आँख मूंदि सोचलकोॅ,
महाराज सें फिनु कहलकोॅ ।
तोहें की सोचलोॅ एकरोॅ परिहार,
सपना तेॅ छिकौं भयंकर ।

राजा हाथ जोड़ि बोललकोॅ,
हम्मेॅ तें तोरोॅ शरण अयलोॅ छी ।
तोहीं बतावोॅ की करियै हम्में,
रामोॅ केॅ गद्दी दे मुक्ति चाहे छी ।

कुलगुरु आँख बंद करि सोचलकोॅ,
दू क्षण बाद सरंग ताकि बोललकोॅ ।
अपसकुनोॅ केॅ परभाव तुरते होय छै,
जल्दिये राज्याभिषेक करबेइयै ।

इ छै पवित्रा रितु मधुमास,
चैत महीना, पुष्पित छै संसार ।
राज्यभिषेक के उपयुक्त समय छै,
पुष्य नछत्रा में हुऐॅ मंगल कार्य ।

हे गुरु तोंही करोॅ विचार,
आज्ञा दै करोॅ कार्य संचार ।
हममें की करियै तोंही बतावोॅ,
राम बनेॅ राजा, हम्में सुख पावौं ।

गुरु वशिष्ठ लागलोॅ सूचि बनाय,
राज्यभिषेक में की की लागतै ।
पूजा-पाठ केरोॅ सभै समान,
राजकुल जोग संस्कार के प्रणाम ।

नया उज्जवल बड़का चामर,
अखंडित कृष्ण मृग चर्म नवीन ।
राजगुरु तेॅ छेवे करलै,
सभै विधि-विधान में प्रवीण ।

नदी, कुइयाँ, तालाब, समुद्र के जल,
अनेक रस आरु सभै रितु फल ।
सभै प्रकार के शहद आरु घी,
दूर्वा चन्दन संग औषधि ।

चन्दन आरू कमल के काठ,
एक सें लै चैदह मुख रुद्राक्ष ।
तीरथोॅ के मिटटी पल्लव आरु कुश,
सुन्दर सिंहासन आरु अभिषेक कलश ।

चतुर्विध पारद दक्षिणावत्र्त शंख,
द्विदल सहस्त्रादल बहुरंगी पद्म ।
सभै कुमुदिनी आरु नलिनी वर्ग,
विविध आकारो के विविध रत्न ।

सभै सामान जन्दी सें आनोॅ,
पूजा पाठ में विलम्ब नै ठानोॅ ।
राजा राम के लेहु बुलाय,
हुनकोॅ इ सब देहु बताय ।

राजा नें रामोॅ केॅ बोलैलकोॅ,
आपनोॅ बात हुनका सुनैलकोॅ ।
राम संकोच के साथ कहलकै,
हे तात भरत तेॅ यहाँ नै छै ।

खाली भरते नै आरू सब छै,
कुलगुरु केरोॅ आज्ञा होलोॅ छै ।
जल्दिये इ काम होना चाहियोॅ,
एकरा में देरी नै करना चाहियोॅ ।

गुरु नें सब बात बतैलकै,
पूजा लेॅ केना रहना छेलै ।
उपवास आरु भूमि शयनकरी,
ब्रह्मचर्य सें रहना छेलै ।

राम जे आज्ञा कही चुप होलै,
पिता के सहमति दै माय पास गेलै ।
पूजा केरोॅ सभै विधान के,
सीता सें भी कहना छेलै ।