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क्या कहते वे / कुमार रवींद्र

सुनो, शांत होकर पत्तों को
क्या कहते वे
 
घाट नहाते
उस साधू का जाप भी सुनो
लिया किसी ने मंदिर में -
आलाप भी सुनो
 
पक्षी भी जब उनको सुनते
चुप रहते वे
 
किसी नमाज़ी ने
मस्जिद में अज़ान दी
उधर गली में मुर्गे ने है
अभी बाँग दी
 
नदी-घाट पर कोरस बनकर
सुर बहते वे
 
उन्हीं सुरों की संगत करते
गीत हमारे
साखी-सबद
उन्हीं की धुन पर गये उचारे
 
इसीलिए
सुख से विपदाओं को सहते वे