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क्या कहूँ मन मन्दिर की बात / बिन्दु जी
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क्या कहूँ मन मन्दिर की बात।
अकस्मात आ बैठा कोई सुंदर श्यामल गात।
मृदु भावों के सुमन कुञ्ज में रहता है दिन रात।
उनको मान भरी चितवन का पड़ता जब आघात।
तब अनुपम आनंद अमृत की होती है बरसात।
उनका मधुर हास रवि सब कर देता सुखद प्रभात।
प्रेम पराग ‘बिन्दु’ मय खिल जाते हैं दृग जलजात॥