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क्या तोड़ गए / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
उनसे करें सवाल, चलो
क्या तोड़ गए वे किश्तों में
धड़क रहा है
यह टुकड़ा
उसमें से खुशबू आती है
आवाज रहा है
यह टुकड़ा
उसमें से गर्म-गर्म बहता
बिखरा तो वे गए
देह से
कुछ ख्याल के
और मिला क्या
उनसे करें सवाल, चलो
ये दोनों भीगे-भीले
वह अंगारा
यह थाली है
वह टूटा हाथ निवाले का
वे तो चुप बींध गए
आंगन में कोलाहल के
कुछ और मिला क्या
उनसे करें सवाल, चलो
सड़क लगें
ये बिछे-विछे
संकेत रहा है
यह टुकड़ा
इन पर
पीछे की धूल चढ़ी
उठ गए पांव
ये दो टुकड़े
वे तो बीच दरार गए
बुर्जियों उजलती दूरी के
कुछ और मिला क्या
उनसे करें सवाल, चलो
क्या तोड़ गए वे किश्तों में