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क्या वो लम्हा ठहर गया होगा.. / श्रद्धा जैन

जब मिटा कर नगर गया होगा
क्या वो लम्हा ठहर गया होगा
     
आइने की उसे न थी आदत
खुद से मिलते ही डर गया होगा

वह जो बस जिस्म का सवाली था
उसका दामन तो भर गया होगा

अब न ढूंढो कि सुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा

खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म था दिल में, भर गया होगा