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क्यों करती हो वाद-विवाद / सुधा उपाध्याय

क्यों करती हो वाद-विवाद
बैठती हो स्त्री विमर्श लेकर
जबकि लुभाते हैं तुम्हें
पुरुषतंत्र के सारे सौंदर्य उपमान
सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य सूचक संबोधन
जबकि वे क्षीण करते हैं
तुम्हारे स्त्रीत्व को
हत्यारे हैं भीतरी सुंदरता के
घातक हैं प्रतिशोध के लिए।
फिर क्यों करती हो वाद-विवाद।