क्रान्ति-बीज बन जाना / जेन्नी शबनम
रक्त-बीज से पनप कर
कोमल पंखुड़ियों-सी खिलकर
सूरज को मुट्ठी में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
नाजुक हथेलियों पर
अंगारों की लपटें दहकाकर
हिमालय को मन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
कोमल काँधे पर
काँटों की फसलें उगाकर
फूलों को दामन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
मन की सरहदों पर
संदेहों के बाड़ लगाकर
प्यार को सीने में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
जीवन पथ पर
जब वार करे कोई अपना बनकर
नश्तर बन पलटवार कर देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
अनुकम्पा की बात पर
भिड़ जाना इस अपमान पर
बन अभिमानी भले जीवन हार देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
सिर्फ अपने दम पर
सपनों को पंख लगा कर
हर हार को जीत में बदल देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !
(जनवरी 7, 2013)