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क्षणिकाएँ/रमा द्विवेदी

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१- ज़िन्दगी की मंज़िलों के
रास्ते हैं अनगिनत,
शर्त है कि रास्ते,
खुद ही तलाशने पड़ते हैं।
 
२- एक ही सूरज यहाँ भी,
एक ही सूरज वहाँ भी,
पर, एक साथ हर जगह,
सुबह नहीं होती।
 
३- अधिकार मांगते हो?
ज़िन्दगी का अंतिम अधिकार,
मृत्यु के हाथ में ही,
सौंपना पड़ता है।