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क्षण / प्रिया वर्मा

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की थी अलविदा जहाँ
दिन की उस चिट्ठी को
तह लगाकर पहले जैसा बंद किया।

इस्तरी किया जैसे भागलपुरी साड़ी को
और किया
स्मृति की दराज़ के सुपुर्द

निकल गई वह
अगले ही दम
उस दिन से बाहर

उस क्षण से बाहर निकलने में
शायद जन्म लग जाए
या खप जाए शायद एक पूरा प्रेम