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खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बच्चे स्लेट पर कुछ लिखकर
पानी से पोंछ देते हैं
एक-सा सुख है उनके लिए
लिख-लिखकर पोंछना
पोंछ-पोंछ कर लिखना
हम अपनी लिखी इबारतों को
पोंछ ही नहीं पाते
दरअसल हम लिखते कहां
खरोंचते हैं
और खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती !