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खस्ताहाल प्रेम पर एक वक्तव्य / अरविन्द श्रीवास्तव

असफल घोषित किया गया था प्रेम में हमें
क्योंकि हम शामिल नहीं थे किसी इश्तिहार में
नहीं थे हिस्सा हम किसी शोर शराबे का
चिलचिलाती धूप और कड़कती ठंढ
पूरी उत्तेजना से कर रही थी हताहत हमें
सर पटकने को अभिशप्त थे हम

सीखा नहीं था हमने प्रेम को सहेजना
तितलियाँ नाराज थी हमसे
गौरेये खुद्दी चुगने नहीं उतर रही थी आंगन
एक कवि की हैसियत से हमने
लंबे घुंघराले बालों को त्याग दिया था
इसलिए एक खूबसूरत और स्वस्थ्य दुनिया
बनाने में हम कमजोर सिद्ध हो रहे थे
बगैर बारिश भी सर पर मंडराता था खतरा
बाढ़ का
इसलिए भी संदिग्ध था हमारा प्रेम
कि प्रेम के लिए हम करते थे
अक्सर जंग
हमारे प्रेम में गुलाब
चाकू की शक्ल ले चुका था
छल और छद्म
वयरस की तरह फैल चुका था
हमारी रगो में
एसिड हमला और गैंगरेप की खबरों से
दहशत में थी लड़की
अपहरण की घटनाओं ने
आँखों की नींद चुरा ली थी
माताओं की
हाई अलर्ट में कोताही का मतलब
डालना था खतरे में खुद को
जब कभी खतरे में पड़ता
प्रेम का इन्फ्रास्ट्रेक्चर
चैकन्ने हो उठते प्रेम प्रबंधक
किसी भी खिचड़ी कल्चर पर -
सर उठाती जब कभी प्रेम में
उटपटांग चीजें
किसी न किसी ‘खाप’ का खौफ
दबोच लेती उसे

प्रेम विषयक प्रसंग को
अक्सर संजीदा घोषित किया गया
कहने के लिए प्रेम में मुलायमियत
बचाना चाहते थे हम सभी
हिंसा और प्रतिहिंसा के विरूद्ध !